भारत में हरित क्रांति कब शुरू हुई थी ?

हरित क्रांति

हरित क्रांति की शुरुआत हुईसन 1966-1967
विश्व में सर्वप्रथम शुरू किया गयानॉरमन बोरलॉग द्वारा
भारत में हरित क्रांति का जनकएस. स्वामीनाथन
उद्देश्यकृषि की उत्पादन तकनीक को सुधारने
एवं कृषि उत्पादन में वृद्धि करना

भारत में हरित क्रांति कब शुरू हुई थी ?

भारत में हरित क्रांति की शुरुआत 1965-68 में हुई थी। इसका मूल उद्देश्य भारतीय कृषि को आधुनिक तकनीकों और प्रौद्योगिकियों के साथ अपनाने के माध्यम से उसे औद्योगिक स्तर पर परिवर्तित करना था। इस क्रांति के द्वारा पुराने और मैनुअल तरीकों से नए, अभिनव और तकनीकी तरीकों में परिवर्तन किया गया। यह भारतीय कृषि को उच्च उत्पादकता और उच्च उपज देने वाली किस्म (HYV) के बीज, ट्रैक्टर, सिंचाई सुविधाएं, कीटनाशक और उर्वरक जैसे उत्पादों का उपयोग करके खेती में सुधार करने का प्रयास था। इससे खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि हुई और खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धि हुई।

भारतीय हरित क्रांति का जनक एम. एस. स्वामीनाथन थे। उन्हें भारत में हरित क्रांति के जनक के रूप में पहचाना जाता है। इन्होंने नई तकनीकों के अनुसरण के माध्यम से खेती में क्रांति लाने के लिए अपनी मेहनत और योजना से खुद को साबित किया।

भारतीय हरित क्रांति का एक और महत्वपूर्ण अंश नॉर्मन बोरलॉग द्वारा शुरू की गई वैश्विक हरित क्रांति था। नॉर्मन बोरलॉग को विश्व में हरित क्रांति का जनक कहा जाता है। उन्होंने अपने किसानों को उच्च उत्पादकता वाले औद्योगिक तरीकों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया और उन्हें नई तकनीकों का अनुसरण करने के लिए प्रेरित किया। इसके परिणामस्वरूप उनके योगदान से विश्व भर में 1 अरब से अधिक लोगों को भूख से मरने से बचाया गया और उन्हें 1970 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

हरित क्रांति के अंतर्गत, विभिन्न राज्यों में पंजाब, हरियाणा, और उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्रों में खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि हुई। इस क्रांति ने भारत के ग्रामीण क्षेत्रों को प्रौद्योगिकियों और विज्ञान के माध्यम से समृद्ध, सुरक्षित, और आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

हरित क्रांति के परिणामस्वरूप, निम्नलिखित उपलब्धियां हुईं:

  1. कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति हुई।
  2. कृषि की उत्पादन क्षमता में वृद्धि हुई।
  3. खाद्यान में आत्मनिर्भरता आई।
  4. व्यावसायिक कृषि को बढ़ावा मिला।
  5. किसानों के दृष्टिकोण में परिवर्तन देखने को मिला।
  6. गेहूं, मक्का, गन्ना, और बाजरा की फसलों में प्रतिहेक्टेयर उत्पादन में वृद्धि हुई।
  7. रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बढ़ा।
  8. उन्नतशील बीजों का उपयोग अधिक हुआ।
  9. सिंचाई सुविधा में वृद्धि हुई।
  10. पौध संरक्षण तथा कीटनाशकों का प्रयोग किया गया।
  11. बहुफसली कार्यक्रम ने उत्पादन में वृद्धि की।
  12. आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रयोग बढ़ा।
  13. उत्पादन तथा उत्पादकता में वृद्धि हुई।

हरित क्रांति के साथ ही कुछ नकारात्मक प्रभाव भी हुए:

  1. रसायनों का अत्यधिक उपयोग के कारण पर्यावरण और मिट्टी का प्रदूषण हुआ।
  2. गेहूं, चावल, ज्वार, मक्का, बाजरा के अलावा गैर-खाद्यानों को छोड़ दिया गया।
  3. बार-बार एक ही फसल चक्र का अनुसरण करने से मिट्टी की पोषण तत्वों में कमी हुई।
  4. गैर-खाद्यानों में उत्पादन में कमी आई।

भारत में हरित क्रांति कब शुरू हुई थी ? | Bharat Mein Harit Kranti Ki Shuruaat Kab Hui -FAQs

प्रश्न 1: हरित क्रांति क्या है और इसका मुख्य उद्देश्य क्या है?

उत्तर: हरित क्रांति भारत में 1960-68 में शुरू हुई एक कृषि क्रांति थी, जिसका मुख्य उद्देश्य खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि करना था। यह क्रांति भारतीय कृषि को पुरानी मैनुअल तकनीकों से नए और अधिनियमित तकनीकों में परिवर्तित करने का प्रयास था, जिससे उत्पादकता बढ़ी और खाद्य सुरक्षा में सुधार हुआ। इसके द्वारा गेहूं, धान, मक्का और बाजरा जैसी मुख्य फसलों के उत्पादन में काफी सुधार हुआ, जिससे देश खाद्यान में आत्मनिर्भर हो सका।

प्रश्न 2: हरित क्रांति में रसायनिक खादों का उपयोग किया गया था, इसके क्या प्रभाव हुआ और इसके नकारात्मक पहलु क्या थे?

उत्तर: हरित क्रांति में रसायनिक खादों के उपयोग से उत्पादन में वृद्धि हुई और खाद्यान्न उत्पादन में सुधार हुआ। रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बिजली, मिट्टी की खपत और पानी के इस्तेमाल को कम करके फसलों के विकास को गतिशील करता है।
हालांकि, रसायनिक खादों के अत्यधिक उपयोग से कुछ नकारात्मक पहलु भी थे। उच्च उपज देने वाली किस्मों के उपयोग से कुछ जगहों पर भूमि की उर्वरता को नष्ट किया गया और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा। रसायनिक खादों के उपयोग से प्राकृतिक संसाधनों को भी प्रभावित किया गया और पर्यावरण को क्षति पहुंची। इसलिए, इसके उपयोग को समझकर उन्हें समझौते के साथ उपयोग करना आवश्यक है ताकि खेती को समृद्ध, उत्कृष्ट और संतुलित बनाया जा सके।

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